8TH SEMESTER ! भाग- 86( before the exam-6)
"शुक्र है कि रात को मैने ग़लती से भी राइट टर्न नही लिया वरना आँख यहाँ नही सीधे हॉस्पिटल मे खुलती..."बड़बड़ाते हुए मैं हॉस्टल की छत से अपने रूम पर पहुचा..."ये साला हो क्या रहा है...ये सारे कपड़े किसने ज़मीन पर फेके... साला, अरुण.... कॉलेज क्या अब मै चड्डी मे जाउन्गा.?? वैसे दीपिका मैम बहुत खुश होंगी मुझे चड्डी मे देखकर... एकदम जोशिया जाएंगी..... आज चड्डी मे ही कॉलेज जाऊं क्या...??? वैसे भी श्री अरमान को अब कौन रोकने वाला है इस कॉलेज मे..."
मैने पूरे रूम पर नज़र दौड़ाई, विपेन्द्र भैया के आने के कारण जहाँ रूम कल शाम तक चमक रहा था वही आज वही चमकता रूम जर्जर हो चुका था...मेरी आलमरी खुली हुई थी और कपड़े नीचे ज़मीन पर पड़े थे...और मेरी बेड शीट को ज़मीन मे बिछा कर अरुण उस पर पसरा हुआ था....
"अबे उठ बे ढोर....उठ... "अरुण को लात मारते हुए मैने कहा..
"उठ..उठ बे..साले.. मर गया क्या...?? उठ..नही तो तेरे ऊपर मूत दूँगा..."कहते हुए मैने अपने जीन्स कि जिब को ऊपर नीचे किया लेकिन अरुण पर मेरी इस धमकी का भी कोई असर नही हुआ ,इसलिए मैने फिर एक बाल्टी पानी उसपर डाला....
"दिव्याआआआआ ..... तुम मेरी हो दिव्या..."चिल्लाते हुए अरुण उठा...
"चुप साले..."
"अरमान...साले... तूऊऊऊ... तो क्या अभी जो कुछ भी मेरे दिव्य के बीच सेक्सी सेक्सी काम हुआ..वो सब महज एक सपना था...????"
"चुप, साले ठरकी और ये बता.... इधर क्या हुआ था कल रात... मैं ऊपर कैसे पंहुचा "
"कल रात"पूरे रूम का जायज़ा लेने के बाद अरुण बोला"कल रात तुझे सिगरेट पीना था तो तूने अपनी आलमरी खोली और सारे कपड़े ज़मीन पर फेक दिए और फिर मुझे लात मारकर यहाँ पर गिरा दिया ,उसके बाद मुझे भी याद नही..."
"चल जल्दी कॉलेज, फर्स्ट पीरियड तो अटेंड करने से रहे...डाइरेक्ट दूसरे पीरियड मे एंट्री मारेंगे.. वैसे भी मेरे बास्केटबॉल कोर्ट मे कल के कारनामें के बाद मेरे फैन्स मेरा इंतजार कर रहे होंगे...."
हम दोनो कॉलेज पहुँचे , आज शनिवार था और शनिवार को सिर्फ़ तीन पीरियड ही लगते थे, इसके बाद कुछ स्टूडेंट मूवी देखने जाते थे तो कुछ घर/हॉस्टल जाकर सोते थे और कुछ जो कि कॉलेज को स्पोर्ट्स वगैरह मे रेप्रेज़ेंट करते थे वो ग्राउंड मे प्रैक्टिस करते थे....मेरा विचार जाकर सोने का था..क्यूंकी मैं आज रात भर स्टडी करने के मूड मे था...लेकिन तभी सेकेंड एअर का एक सीनियर मेरे रास्ते मे टपक पड़ा....
"अरमान तू ही है ना..."उसने मुझसे पुछा...
"नही... मैं नहीं... ये है अरमान ,अब बोल.."अरुण की तरफ उंगली दिखाते हुए मैने उसे अरमान बना दिया....
"मुझे चूतिया मत बना, मैं जानता हूँ कि तू ही अरमान है..."
"जब जानता था कि मैं ही अरमान हूँ तो फिर मुझसे पुछ्कर टाइम पास क्यूँ कर रहा था... साले, अभिये धर के पेल दूंगा तो रोते रोते उस लतखोर वरुण के पास जायेगा..."
"तुझे बास्केटबॉल के कोच ने बास्केटबॉल कोर्ट मे बुलाया है..."
"मिल लूँगा...और कुछ ..."
"तेरा सीनियर हूँ मैं... थोड़ा तमीज़ से बात किया कर..."
"चल बे.. तेरे जैसे सीनियर मेरे इसके... नीचे लटकते रहते है... इसलिए आइंदा औकात मे रहकर बात किया कर "
मैं अरुण के साथ आगे बढ़ा...मैं उस सीनियर से इस तरह बिहेव इसलिए कर रहा था क्यूंकी वो सिटी का था और इससे भी बड़ी वजह ये थी कि वो गौतम के खास दोस्तो मे से एक था.... और गौतम वो शख्स जो ईशा को पता के रखा था..इसलिए इतना तो बनता है....
"देखा अरुण... एक दम मस्त झाड़ा साले को...मैं तो उसको पेलने के मूड मे आ गया था..."बास्केटबॉल कोर्ट पहुंचने से पहले मैने अरुण से कहा ...
"अब चुप रह,बास्केटबॉल ग्राउंड आ चुका है और कोच पास मे ही है..."
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वहा पहले से ही कई लोग मौज़ूद थे..जिनमे से गौतम और उसके चेले भी थे और उन सबके साथ ईशा और उसकी सहेलियां भी.... मेरे वहाँ पहुचते ही जहाँ गौतम और उसके दोस्तो के चेहरे रंग बदल गया वही ईशा जो गौतम के साथ वहाँ आई थी ,उसके भी चेहरे की रंगत थोड़ी बदल सी गयी... क्या इतना खटकता हूँ मैं लोगो को...?? जबकि कल मैने शायद इस कॉलेज के इतिहास मे सबसे अच्छा बास्केटबॉल खेला होऊंगा... फिर भी ऐसा रिएक्शन...?? मैने तो सोचा था कि लोग आज मेरे ऑटोग्राफ के लिए लाइन लगाए हुए खड़े होंगे... पर....
"3 चान्स है, बास्केट करो..."कोच , तुरंत बास्केटबॉल मेरी तरफ फेकते हुए बोले...
"ये तीन चान्स किसलिए, तीन बास्केट करना है क्या..."
"पहले एक तो करके दिखा..."गौतम बीच मे टपकते हुए बोल पड़ा...
"उसके लिए तीन चान्स की क्या ज़रूरत,एक ही काफ़ी है..."मैने बास्केटबॉल हाथ मे पकड़ा, रिंग कि ओर आँखे करके आँखों और हाथो के बीच ताल -मेल बिठाया और बास्केटबॉल सीधे रिंग मे घुसा दिया...
"Woww...वन्स मोर..."एक लड़की जो की ईशा के पास खड़ी थी उसने रोमॅंटिक अंदाज़ मे तालिया बजाते हुए कहा... चलो, साली एक तो पटी 😁
"तुम शांत रहो "कोच ने उस लड़की को तेज आवाज़ मे झाड़ा और फिर मेरी तरफ देखते हुए बोले"you Continue, Boy..."
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उसके बाद मैने एक और बार बास्केटबॉल रिंग मे डाल दी... जिससे मेरा कॉन्फिडेंस इतना हाई हुआ कि मै ये सोचने लगा कि यदि मै आँख बंद करके भी बास्केटबॉल फेकूंगा तो वो भी डायरेक्ट रिंग मे जाएगा... और मैने ये एक्चुअली मे किया भी... मैने डायरेक्शन और बास्कीतेबॉल कैसे फेकना है,इन सबका अनुमान लगाकर.. होनी आँखे बंद की और बास्केटबॉल को रिंग कि तरफ उछाला..... और....................
अबकी मैं मिस हो गया...और इस तरह तीन चान्स मे मैं सिर्फ़ दो बास्केट ही कर पाया....मैं एक बास्केट और नही कर पाया,इस बात से गौतम और उसके दोस्त खुश थे ,लेकिन कोच का नज़रिया कुछ और ही था...उन्होने मेरी पीठ थपथपाई और टीम मे शामिल होने के लिए कहा....
अभी कोच ने मुझे टीम मे शामिल होने के लिए कहा ही था की गौतम बीच मे फिर टपका...
"सर...हमारे सभी प्लेयर आपके द्वारा दिए गये तीन चान्सस मे तीनो बार बास्केट कर देंगे...इसे लेने का कोई फ़ायदा नही,खाम खा इसे लेकर हम अपनी टीम को बिगाड़ देंगे...."
"गौतम...मुझे मालूम है कि तुम्हारी टीम बहुत अच्छी है,लेकिन शायद तुमने कल के मैच मे आख़िरी के 5 मिनिट्स के खेल को ध्यान से नही देखा....मैने इस तरह का गेम,जो कि अपने आप मे एक अजीब है, कभी नही देखा... He has his own strategies and we need it....."
"लेकिन सर..."
"चुप रहोगे...प्लीज़ "कोच ने मेरी तरफ़दारी की इसलिए गौतम ने बुरी शकल बना ली..
"Don't worry Gautam... I 'm also not interested in playing side by side with you... तेरी और मेरी सिर्फ दुश्मनी हो सकती है..."मैने मुस्कुराते हुए तेज आवाज़ मे कहा....
"Same Here, Arman.."
"तुम दोनो अब बस भी करोगे...गौतम तुम अब कुछ मत बोलना और अरमान तुम आज से प्रैक्टिस शुरू कर दो. बल्कि मै तो कहता हूँ की...अभी से .."
" पर मेरी एक शर्त है...सॉरी एक नही दो... एक्चुअली दो नही बल्कि तीन...सिर्फ़ तीन..."
"कैसी शर्त..."
"पहली शर्त ये कि मैं प्रैक्टिस करने तभी आउन्गा जब मेरा मन होगा...."मेरी पहली शर्त सुनकर ही वहाँ खड़े सब लोगो के मुँह 3 इंच फट गया, यहाँ तक की अरुण का भी , खैर मैने आगे कहा"दूसरी शर्त ये कि ,मैं जिसे चाहूँगा उसे ही मैच मे आप खिलाओगे और आख़िरी शर्त ये कि मैं टीम का कैप्टन रहूँगा..."
मेरी तीसरी शर्त सुनकर सबका मुँह आधा इंच और खुल गया ,गौतम तो तीसरी शर्त सुनकर भड़क ही उठा लेकिन कोच ने अपनी आँखे बड़ी करके जब गौतम को धधकती हुई अपनी आँखे दिखाई तो उसे शांत होना पड़ा...
"और यदि मैं तुम्हारी एक भी शर्त ना मानु तो..."
"तो फिर अरमान नाम की किट बनवाने का आपका सपना अधूरा रह जाएगा..."मुस्कुराते हुए बड़े ताव से मैने कहा
"हट जा मेरी नज़र से.....नालायक..."कोच मुझपर चिल्लाया
"Bitch Please... First Raise your Level, then Raise your Voice.... लेवल ही नहीं तुम लोगो का... कहा मै नेशनल लेवल का प्लेयर और कहा तुम साले..डिस्ट्रिक्ट लेवल मे हारे हुए प्लेयर... तुम लोगो की इतनी औकात की श्री अरमान को टीम मे शामिल करोगे... देखा अरुण, मैने पहले ही कहा था ना .. अब चल... चलके गांजा मारते है "
मेरे इतना कहते ही अरुण का मुँह जितना पहले खुला था वो अब और आधा इंच खुल गया...
"मुँह बंद कर ले बे वरना कोई चूसा कर चला जायेगा....."उसका मुँह बंद करते हुए मैने कहा
पर अरुण कुछ कहना चाहता था.. या फिर मुझे टीम मे शामिल होने की नसीहत देने वाला था... या फिर कुछ और... और जैसे ही उसने कुछ कहने के लिए अपना मुँह फाड़ा... तभी एक लड़की ,जो बहुत देर से ईशा के साथ थी वो खुशी से उछलते हुए ठीक मेरे सामने आ खड़ी हुई...
"हीईीईई...अरमान..."
"तू कौन "
"मी...दिव्या..."शरमाते हुए उसने अपना नाम बताया और दिव्या नाम सुनकर मुझे आज सुबह की याद आई ,जब अरुण दिव्या का नाम लेते हुए नींद से जागा था...मैने पहले उस लड़की की तरफ देखा और फिर अरुण की तरफ.... अरुण हल्का -हल्का शरमा रहा था...जिससे मै समझ गया की हो ना हो.... ये वही दिव्या है,जिसके दिव्य सपने अरुण आज देख रहा था...इसलिए....
"ये है मेरा दोस्त ,अरुण..."अरुण को सामने लाते हुए मैने दिव्या से कहा...
"I know Arun..."शरमाते हुए वो बोली"हम दोनो फ़ेसबुक मे फ्रेंड्स है..."
"वो सब तो ठीक है,लेकिन पहले ये बताओ की तुम दोनों इतना शर्मा क्यूँ रहे हो..."
"तुम बहुत अच्छा खेलते हो...इसलिए "
"तो फिर तुम क्यूँ शरमा रही हो,शरमाना तो मुझे चाहिए ..."
"दिव्या,इसे बास्केटबॉल खेलना मैने सिखाया है...."अरुण ने चुपके से कोहनी मारा ,जिसका मतलब मैं समझ गया था..
"यस दिव्या... अरुण सर सही बोल रहे है..."
"फिर तो तुम अरमान से भी ज़्यादा अच्छा खेलते होगे..."खुश होते उसने अपनी चेहरा अरुण की तरफ घुमाया...
"Ofcourse... मेरे सामने तो अरमान दूध पीते हुए बच्चे के समान है ..."अरुण तुरंत बोला...
इसके बाद अरुण और दिव्या एक दूसरे मे भीड़ गये और दुनियाभर की उलूल -जुलूल बाते करने लगे... जैसे की दिव्या उसे बता रही थी कि उसने कल अपना एक फोटो फ़ेसबुक मे अपलोड किया है...और उसके एक हफ्ते पहले भी उसने एक फोटो अपलोड किया था.....
"दिव्या...here "अरुण और दिव्या कि गुपशुप मी दखल देते हुए ईशा ने अपना हाथ हवा मी लहराया यानी कि वो दिव्या को अपने पास बुला रही थी... , लेकिन दिव्या तो अरुण के साथ फेस तो फेस चॅट करने मे बिज़ी थी...उसे ऐश की आवाज़ सुनाई ही नही दी... इधर मै खुद को मज़बूत करके ऐश की तरफ बढ़ा....
"तुम दिव्या हो..."जैसे ही मै ईशा के सामने पंहुचा वो थोड़ा गुस्से मे बोली
"नही..."
"तो फिर तुम यहाँ क्यूँ टपक पड़े, मैने तो दिव्या को आवाज़ दी थी..."
"तुम्हारी सहेली मेरे दोस्त के साथ भिड़ी हुई है तो क्यूँ ना हम दोनो भी एक -दूसरे से भिड़ जाए... क्या नेक खयाल है ..."